राजस्थान के बीकानेर से एक ऐसी खबर आई है, जिसने मंदबुद्धि से जूझ रहे बच्चों और उनके माता-पिता के लिए उम्मीद जगा दी है. जी हां, देश के एक मात्र कैमल रिसर्च सेंटर के अनुसंधान में ऊंटनी का दूध मंदबुद्धि बच्चों के लिए घुट्टी बनकर उभरा है. बीकानेर से रोजाना करीब 40 लीटर दूध पिछले डेढ़ साल से पंजाब जा रहा है. ये मंदबुद्धि बच्चों पर काफी कारगर साबित हो रहा है.
रिसर्च में लगे वैज्ञानिक अपनी ताजा रिपोर्ट का हवाला देते हुए दावा करते हैं कि ऐसे बच्चों में 40-45 फीसदी तक सुधार हो रहा है. कई बच्चे तो सामान्य बच्चों के करीब ही अपनी जिंदगी जीने लगे हैं. बीकानेर के राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केंद्र से पंजाब के बाबा फरीद सेंटर फॉर मेंटली रिटायर्ड चिल्ड्रेंस को ये दूध जा रहा है. रिसर्च में लगे डॉक्टर, वैज्ञानिकों ने 41 बच्चों पर कैमल मिल्क का नियमित प्रयोग किया. इसके बेहतरीन रिजल्ट रहे हैं.
केंद्र के प्रिंसिपल साइंटिस्ट राघवेंद्र सिंह बताते हैं कि ऊंटनी का दूध मंदबुद्धि बच्चों की जिंदगी नए सिरे से संवार रहा है. परेशान मां-बाप फिर से खुशियां पा रहे हैं. बंगलुरु, चेन्नई, मुंबई, हैदराबाद जैसे देश के अन्य हिस्सों से भी अपने जिगर के टुकड़े की असमान्यता से जूझ रहे मां-बाप यहां दूध लेने के लिए आ रहे हैं. वे एक से तीन माह का दूध लेने के लिए यहां आते हैं.
केंद्र डायरेक्टर डॉ. एनवी पाटिल कहते हैं कि बच्चों की खुशियां लौटाने से बेहतर रिजल्ट और क्या हो सकता है. जल्द ही कैमल मिल्क बड़े व्यापार के रूप में उभरेगा. वैज्ञानिकों का मानना है कि देश में तेजी से कम हो रहे ऊंटों को बचाने की भी सख्त जरूरत है. राजस्थान में फिलहाल देश के चार लाख में से सर्वाधिक साढ़े तीन लाख ऊंट हैं. डॉ. राघवेंद्र सिंह कहते हैं कि पिछले 15 साल से हम ऊंटनी के दूध पर शोध कर रहे हैं और कई तरह की बीमारियों पर हमने शोध किया है. मंदबुद्धि बच्चों पर जो शोध हुआ है उनमें सुधार के लक्षण दिखे हैं. दूध खरीदने वाले जफर ने कहा कि कैमल मिल्क डायबिटीज के मरीजों पर भी अच्छा असर दिखा रहा है.