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धर्म

होली दहन के मुहूर्त से लेकर क्या है वैज्ञानिक दृष्णिकोण

देश में रंगों के त्योहार होली का बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है का लोग बेसब्री से इंतजार करते है इस वर्ष होली का दहन 9 और 10 मार्च को रंग खेला जाएगा. हिंदू धर्म में होली के त्योहार पर लोग आपसी द्वेष और नफरत को भुलाकर एक दूसरे को रंग लगाते है और खुशियां मनाते हैं.
होली की शुरुआत प्राचीन काल में राजा हिरण्यकश्यप और उनके पुत्र प्रहलाद की कहानी से हुई. खुद को भगवान समझने वाले राजा हिरण्यकश्यप के घर प्रहलाद का जन्म हुआ जो हमेशा भगवान नारायण की भक्ति में लीन रहता था. ये हिरण्यकश्यप को पसंद नहीं था. जिसके बाद प्रहलाद की परीक्षा लेने के लिए उन्होंने अपने ही पुत्र जलाने का प्रयास किया लेकिन वो बच गया. जिसके बाद हिरण्यकश्यप की बहन होलिका (जिसके कभी आग से ना जलने का वरदान प्राप्त था) प्रहलाद को लेकर हवन कुंड में बैठ गई. परंतु सद्वृति वाला ईष्वरनिश्ठ बालक अपनी बुआ की गोद से हंसता खेलता बाहर आ गया और होलिका भस्म हो गई. तभी से प्रतीकात्मक रुप से इस संस्कृति को उदाहरण के तौर पर कायम रखा गया है और उत्सव से एक रात्रि पूर्व, होलिका दहन की परंपरा पूरी श्रद्धा व धार्मिक हर्षोल्लास से मनाई जाती हैं.

होली का त्योहार अपने साथ ढेर सारी खुशियां और हल्की फुल्की मस्ती साथ लेकर आता हैं. होली खासकर मथुरा और वृंदावन में लोग लठ्ठ के साथ होली खेलते हैं, जिसे लठ्ठमार होली कहते हैं. इसे देखने और शामिल होने के लिए लोग काफी दूर दूर से यहां आते हैं
इस बार होलिका दहन 9 मार्च के दिन सोमवार को किया जाएगा. होलिका दहन का शुभ मुहूर्त शाम 6 बजकर 22 मिनट से लेकर रात्रि 8 बजकर 50 मिनट तक रहेगा. वहीं रंग खेलने वाली होली अगले दिन 10 मार्च मंगलवार को मनाई जाएगी. इसी दिन होला, धुलैंडी व वसंतोत्सव कई प्रदेशों में उत्साहपूर्वक मनाया जाता है. कई धर्मस्थलों पर इस दिन ध्वजारोहण भी किया जाता हैं.

होलिका दहन करने के पीछे एक वैज्ञानिक द्ष्टिकोण है. इस दिन लोग अग्नि प्रज्जवलित कर वायुमंडल से संक्रामक जर्म्स दूर करने का प्रयास करते है. वातावरण को शुद्ध करने के लिए लोग दहन में हवन सामग्री के अलावा गूलर की लकड़ी, गोबर के उपले, नारियल, अधपके अन्न आदि के अलावा बहुत सी निरोधात्मक सामग्री का उपयोग करते हैं. देश भर में एक साथ एक विशिष्ट रात में होने वाले होलिका दहन से मलेरिया, वायरल, फ्लू आदि संक्रामक रोग-कीटाणुओं के विरुद्ध यह एक धार्मिक सामूहिक अभियान है. इस पर्व को नवानेष्टि यज्ञ भी कहते हैं क्योंकि खेत से नवीन अन्न लेकर यज्ञ में आहुति देकर फिर नई फसल घर लाने की हमारी पुरातन परंपरा रही है.


मानव शरीर पर रंगों का वैज्ञानिक और ज्योतिषीय प्रभाव दोनों ही पड़ता है. यह इंसान की मनोवृति प्रभावित करता है. अनुकूल रंग मूड को बढ़िया बना सकता है तो वहीं गलत रंग आपको आपस में भिड़ा सकता है. अतः गलत रंगों से बचना चाहिए.
सूखे या गीले रंगों में प्राकृतिक वस्तुओं और फूलों का प्रयोग किया जा सकता है. मानयता के अनुसार भगवान कृष्ण होली पर टेसू के फूलों का प्रयोग करते थे. लाल रंग पवित्रता, हरा प्रकृति, नीला शांति, पीला शुद्धता, गुलाबी उल्लास तथा काला क्रूरता का आभास देता है. मेंहदी, पालक, पुदीना पीस कर छान लें और प्राकृतिक हरा रंग तैयार हो जाएगा. वहीं सूखे रंगों के लिए आप लाल, पीला व सफेद चंदन मुल्तानी मिट्टी या मैंदे में मिलाकर प्राकृतिक गुलाल बना सकते हैं. यह त्वचा के लिए गुणकारी भी रहेगा.
आप यदि अपनी राशि के अनुसार रंग लगाएं या कपड़े पहनें और खास रंग से बचें तो होली का उत्सव और रंगीन हो जाएगा.

मेष व बृश्चिक:- आप लाल, केसरिया व गुलाबी गुलाल का टीका लगाएं व लगवाएं और काले व नीले रंगों से बचे.
बृष व तुलाः- आपको सफेद, सिल्वर, भूरे, मटमैले रंगों से होली क्रीड़ा भाएगी. हरे रंगों से बचें.
मिथुन व कन्या:- हरा रंग आपके मनोकूल रहेगा. लाल, संतरी रंगों से बचे.
कर्कः- पानी के रंगों से इस होली पर बचे. आस्मानी या चंदन का तिलक करें या करवाएं और काले नीले रंगों से परहेज रखें.
सिंहः- पीला, नारंगी और गोल्डन रंगों का उपयोग करें. काला, ग्रे, सलेटी व नीला रंग आपकी मनोवृति खराब कर सकते हैं इसलिए इन रंगों का परेज करें.
धनु व मीनः- राशि वालों के लिए पीला लाल नारंगी रंग फिज़ा को और रंगीन बनाएगा. काला रंग न लगाएं न लगवाएं.
मकर व कुंभः- आप चाहे काला, नीला, ग्रे रंग जितना मर्जी लगाएं या लगवाएं, मस्ती रहेगी परंतु लाल, गुलाबी गुलाल से बचें.

 

 

 

 

26 February, 2020

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