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राजनीति

एक बंटा हुआ फैसला ? क्या सवर्ण जातियों (के गरीब तबकों) को भी आरक्षण मिलना चाहिए ?

इस निर्णय से इस महत्त्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर नहीं मिला है कि अगर आरक्षण एक तरह का गरीबी हटाओ कार्यक्रम है, तब भी मौजूदा आर्थिक नीतियों के बीच इससे आखिर सवर्णों को असल में कितना लाभ होगा? क्या सवर्ण जातियों (के गरीब तबकों) को भी आरक्षण मिलना चाहिए? क्या ऐसा करना संवैधानिक भावना के अनुरूप होगा? सुप्रीम कोर्ट के सामने वैसे तो कई प्रश्न और थे, लेकिन ये दो बुनियादी सवाल थे।
कोर्ट के सामने मुद्दा इसलिए आया, क्योंकि साढ़े तीन साल पहले संसद ने इस आरक्षण का प्रावधान कर दिया था। संसद में जब ये मामला आया, तब वहां बंटी हुई राय सामने आई थी। समाज में इस सवाल पर राय बंटी रही है। राजनीतिक दलों को राय तो अक्सर चुनावी लाभ- हानि की गणना से तय होती है, लेकिन समाज में मौजूद मतभेद का आधार वैचारिक है। इस बारे में असहमति की खाई इतनी चौड़ी है कि इस पर अक्सर बहस तीव्र आक्रोश की हद तक पहुंच जाती है। यही असहमति सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ में ही देखने को मिली है।
तीन जजों ने इस आरक्षण को उचित ठहराया, तो दो जजों की राय रही कि ऐसा करना असंवैधानिक है। दो जज तो लगभग यह कहने की हद तक गए कि अब आरक्षण की जरूरत ही नहीं है।चूंकि निर्णय बहुमत से हुआ, इसलिए फिलहाल इस मुद्दे से जुड़े कानूनी मसलों का निपटारा भले हो गया हो, लेकिन इसको लेकर समाज में राय पहले जितनी ही बंटी रहेगी।
एक मुद्दा यह भी उठा था कि अगर आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए अलग से 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था हो रही है, तो क्या उसका लाभ सभी जातियों के गरीबों को नहीं मिलना चाहिए? केंद्र सरकार ने प्रावधान किया था कि ये आरक्षण सिर्फ उन जातियों को मिलेगा, जिन्हें ये लाभ पहले से मौजूद आरक्षण में नहीं मिला हुआ है- यानी यह आरक्षण खास तौर पर सवर्णों के लिए है।
सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत से इस प्रावधान को भी सही ठहरा दिया है। मगर इस निर्णय से इस महत्त्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर नहीं मिला है कि आरक्षण सामाजिक-शैक्षिक पिछड़े लोगों को प्रतिनिधित्व देने लिए अपनाया गया था, यह गरीबी हटाओ कार्यक्रम है? अगर यह गरीबी हटाओ कार्यक्रम है, तो मौजूद आर्थिक नीतियों के बीच इससे आखिर सवर्णों को भी असल में कितना लाभ होगा?

14 November, 2022

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