श्योपुर,21 अप्रैल ; 75 साल बाद भारत में लाए गए चीतों ने क्या बदला, कहने को कह सकते हैं कुछ नहीं, लेकिन जमीनी हकीकत नकारात्मक बिलकुल नहीं है, कम से कम उस क्षेत्र की जहां चीतों का बसेरा है। देश की अति पिछड़ल विशिष्ट जनजाति सहरिया के कारण पांचवीं अंकसूची में शामिल श्योपुर जिले के कराहल ब्लाक का नाम पहले कुपोषण और पेयजल समस्या का पर्याय था। अब यह भारत मेें चीता के घर में रूप में जाना जाता है। कूनो पतझड़, वन दिखाई दे रही है। यहां जितने नीरस वन दिखाई दे रहे हैं उतने ही लोकसभा चुनाव लेकिन स्थानीय मुद्दों पर आदिवासी समाज मुखर होकर बात करता है। पिछले लोकसभा चुनाव में इस क्षेत्र में आदिवासी वोट कांग्रेस को गए थे इस बार मामला इतना सीधा नहीं है उसके दो कारण हैं एक तो चीता प्रोजेक्ट के कारण हो रहा है स्थानीय विकास और दूसरा केंद्रीय योजनाओं का आदिवासियों की मिल रहा लाभ।